शिक्षिका उषा सागर की कविता- शब्द ढूंढती रही
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शब्द ढूंढती रही
क्या कहूं, कैसे कहूं मैं
सदा यूं सोचती रही
दिल में हजारों जख्म थे
मरहम तुमसे मिले, सोचती रही
उम्मीद तुमसे की थी जो हमने
बयां करने को बस शब्द ढूंढती रही।
कहना भी चाहा कुछ अगर कभी
तेरे तेवरों को देख घबराती रही
यूंही बेवजह बरसते रहे मुझ पर
मैं अपने भावों को दबाती रही
जुबां तक आई कभी जो बात
बयां करने को बस शब्द ढूंढती रही।
मेरी आह मेरे दर्द वेदना को
न समझ सका कोई कभी
मैं गैरों की खुशियों में
हंसी अपनी लुटाती रही
है तुझसे मेरी आरजू क्या
बयां करने को बस शब्द ढूंढती रही।
दबाकर मेरे जज़्बात सदा
खुश रहना तेरी आदत रही
हजारों जवाब थे पास मेरे
फिर भी मैं मूक बनी रही
तेरे नश्तर के घाव गहरे हैं कितने
बयां करने को बस शब्द ढूंढती रही।
तेरी आरजू न रहे अधूरी कोई
मैं अपना सब कुछ लुटाती रही
गम अपने भुलाकर सदा
तेरे रिश्ते, खुशियां निभाती रही
आंसुओं से भरी यूं कहानी मेरी
बयां करने को बस शब्द ढूंढती रही।
बचपन में थी जब मग्न मैं
जवानी दस्तक देती रही
गृहस्थी के रंग ढंग में बेढंग सी
बुढ़ापे की आहट आती रही
कहना था न मेरे पास आना
बयां करने को बस शब्द ढूंढती रही।
उम्र की दहलीज पर खड़ी
मजबूर, असहाय सी रही
जाने कब दीप बुझे
मैं व्यथित हो सोचती रही
बुझ गया दीप , आंखें बंद हो गई
शब्द ढूंढ़ते ढूंढ़ते नि:शब्द हो पड़ी रही।।
कवयित्री का परिचय
उषा सागर
सहायक अध्यापक
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय गुनियाल
विकासखंड जयहरीखाल
पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल
मेल आईडी-bhanubangwal@gmail.com
भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।