पृथ्वी की तरह जूपिटर में भी चमकती है बिजली, बाकी ग्रहों से कुछ अलग, नासा ने यूरेनस ग्रह पर देखा चक्रवात
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पृथ्वी की तरह भी जूपिटर में बिजली चमकती है और गिरती है। नासा के जूनो अंतरिक्ष यान ने दोनों ग्रहों के वातावरण की रासायनिक संरचना में भारी अंतर के बावजूद बृहस्पति और पृथ्वी पर बिजली गिरने के बीच समानता का पता लगाया है। हमारे सौर मंडल के सबसे विशाल ग्रह को ढकने वाले भूरे रंग के अमोनिया बादलों के नीचे पृथ्वी की तरह ही पानी से बने बादल हैं। चूंकि इन बादलों के भीतर अक्सर बिजली उत्पन्न होती है, इसी तरह की गतिविधि बृहस्पति पर भी होती है। इन बिजलियों को जूनो सहित कई दूसरे अंतरिक्ष यानों ने कैप्चर किया था। अब शोधकर्ताओं ने बृहस्पति के बादलों में बनने वाली बिजली और पृथ्वी की बिजली की समानता को लेकर एक अध्ययन प्रकाशित किया है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
डेटा में किया गया ये खुलासा
हमारी पृथ्वी सौर मंडल के सबसे छोटे ग्रहों में शामिल है। वहीं, बृहस्पति का नाम एक प्राचीन रोमन देवता के नाम पर रखा गया है। बृहस्पति सौर मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इस विशालकाय गैस के गोले में 1300 से अधिक पृथ्वी समा सकती है। इस ग्रह के बादलों में बनने वाली बिजली हजारों बोल्ट्स की होती हैं। अब जूनो अंतरिक्ष यान से लिए गए पांच साल के हाई रिजॉल्यूशन डेटा का अध्ययन कर शोधकर्ताओं ने बताया है कि इस ग्रह की बिजली हमारे ग्रह के बादलों के अंदर देखी गई समान लय के साथ स्पंदित होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
अध्ययन में दी गई ये जानकारी
नेचर कम्युनिकेशंस पत्रिका में इस हफ्ते प्रकाशित अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा कि बृहस्पति पर दिखाई देने वाली पल्स बिजली की चमक हैं जो पृथ्वी पर गरज के साथ लगभग एक मिलीसेकंड के समय के अंतराल के साथ चमकती हैं। पृथ्वी पर, बिजली प्राकृतिक रूप से उत्पन्न होने वाला सबसे शक्तिशाली विद्युत स्रोत है। प्राग में चेक एकेडमी ऑफ साइंसेज इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फेरिक फिजिक्स के ग्रह वैज्ञानिक इवाना कोलमासोवा और इस अध्ययन के प्रमुख लेखक ने कहा कि बिजली बादलों के अंदर बनती है। बादल के अंदर बर्फ और पानी के कण चार्ज हो जाते हैं। ये टक्करों द्वारा और समान ध्रुवता के आवेश वाले कणों की परतें बनाते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
कई दूसरे ग्रहों में चमकती है बिजली
कोलमासोवा ने कहा कि इस प्रक्रिया से, एक विशाल विद्युत क्षेत्र स्थापित होता है और विद्युत का प्रवाह शुरू होता है। यह स्पष्टीकरण कुछ हद तक सरल है क्योंकि वैज्ञानिक अभी भी पूरी तरह से निश्चित नहीं हैं कि वास्तव में बादलों के अंदर क्या हो रहा है। 1979 में नासा के वायेजर 1 अंतरिक्ष यान द्वारा सौर प्रणाली के माध्यम से उद्यम करते समय श्रव्य आवृत्तियों पर टेल्टेल रेडियो उत्सर्जन दर्ज किए जाने पर बृहस्पति पर बिजली गिरने की पुष्टि हुई थी। सौर मंडल के अन्य गैस-बहुल ग्रहों – शनि, यूरेनस और नेपच्यून – में भी बिजली चमकी देखी गई थी। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
बाकी ग्रहों से अलग है बृहस्पति की बिजली
अन्य अध्ययनों में बृहस्पति और पृथ्वी पर बिजली चमकने की प्रक्रियाओं में अन्य समानताओं की विस्तृत जानकारी है। उदाहरण के लिए, दो ग्रहों पर बिजली गिरने की दर समान है, हालांकि बृहस्पति पर बिजली का वितरण पृथ्वी से भिन्न है। पृथ्वी पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में सबसे ज्यादा बिजली बनती है और गिरती है।वहीं, बृहस्पति में बिजली का अधिकांश भाग मध्य-अक्षांश और ध्रुवीय क्षेत्रों में बनता है। पृथ्वी पर ध्रुवों के करीब लगभग कोई बिजली की गतिविधि नहीं होती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सौरमंडल के ग्रहों में यूरेनस ग्रह पर एक नई खोज ने वैज्ञानिकों के लिए शोध की एक नई राह खोलने का काम किया है। वैसे तो यूरेनस ग्रह पृथ्वी से 2.5 अरब किलोमीटर की दूरी पर है और उसका अध्ययन उतनी बारीकी से नहीं हो सकता है। फिर भी यूरेनस ग्रह को लेकर हमारे वैज्ञानिकों को बहुत अनोखी जानकारियां मिली हैं। बताया कि सौरमंडल के ग्रह कितने अजीब हो सकते हैं। अब नासा ने ऐसे मजबूत संकेत हासिल किए हैं, जिनसे साफ होता है कि यूरेनस ग्रह के ध्रुवों के वायुमंडल में बहुत विशाल चक्रवाती तूफान मौजूद हैं. इस तरह के संकेत पहली बार पाए गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
ऐसे आसान हुआ अध्ययन
बहुत दूर स्थित होने की वजह से यूरेनस ग्रह का अवलोकन और अध्ययन वैसे ही बहुत मुश्किल होता है। वहां से तरंगों को आने में काफी समय लगता है। वहीं यूरेनस की धुरी लगभग ग्रहों की परिक्रिमा के तल के समांतर ही होती है। एक अच्छी बात यह है कि कुछ दशकों से यूरेनस का एक ध्रुव पृथ्वी की ओर मुंह नहीं किए हुए है, जिससे उसके ध्रुव के अवलोकन में आसानी हो गई है। यही वजह है कि धरती पर मौजूद रेडियो टेलीस्कोप के जरिए हमारे खगोलविद यूरेनस के ध्रुव का अध्ययन कर सके। वैज्ञानिकों ने बर्फीले ग्रह से निकलने वाली रेडियो तरंगों के अध्ययन के आधार पर पाया कि यूरेनस के उत्तरी ध्रुव पर विशाल और प्रचंड चक्रवात की प्रक्रिया चल रही है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सभी ग्रहों में भंवर की प्रक्रिया
इस पड़ताल के नतीजे ने इस बात की भी पुष्टि करने का काम किया है कि बुध को छोड़कर हमारे सौरमंडल के सभी ग्रहों, जिनमें वायुमंडल है, उनके ध्रुव धूमते हुए भंवर के संकते जरूर हैं। चाहे ग्रह पथरीला हो या फिर गैसीय। दिलचस्प बात यह है कि वैज्ञानिक बहुत लंबे समय से यह जानते हैं कि यूरेनस के दक्षिणी ध्रुव में घुमावदार आकृतियां मौजूद हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पहले भी देखे गए थे घूमते बादल
नासा के वॉयजर 2 यान की तस्वीरों से पता चला था कि यूरेनस के दक्षिणी ध्रुव के ऊपर मीथेन के बादल हैं। आसपास की तुलना में ध्रुव के केंद्र में हवाएं ज्यादा तेजी से घूम रही हैं। वॉयजर के इन्फ्रारेड मापन के अवलोकन से किसी तरह का तापमान में बदलाव नहीं देखे गए थे। जियोफिजिकल रिसर्चन लैटर्स में प्रकाशित अध्ययन के नतीजों में ऐसे बदलाव जरूर देखे गए हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
मजबूत चक्रवात का संकेत
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के लिए न्यू मैक्सिको स्थित वेरी लार्ड ऐरे के विशाल एंटीनाओं का उपयोग किया और यूरेनस ग्रह के बादलों के अंदर झांकने का प्रयास किया। उन्होंने पाया कि घूमती और बहती हवा के कारण ग्रह के बादलों की हवा गर्म और सूखी है और यह एक मजबूत चक्रवात का संकेत है। शोधकर्ताओं ने 2015, 2021, और 2022 तक लिए गए अवलोकनों के जरिए यूरेनस के वायुमंडल की गहरी और अभूतपूर्व जानकारियां हासिल की। इनसे यूरेनस की कहानी के बारे में बहुत कुछ पता लगा। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
इन सभी उपलब्धियों के पीछे यूरेनस की खास अवस्था की सबसे बड़ी भूमिका है। यूरेनस को सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने में पृथ्वी के कुल 84 सालों का समय लगता है, लेकिन पिछले कुछ दशकों से ध्रुवों की दिशा पृथ्वी की ओर नहीं थी। इससे वैज्ञानिकों के लिए दोनों ही ध्रुवों की अच्छी जानकारी हासिल करना आसान हो गया। यूरेनस पर पानी ना होने से ये चक्रवात ध्रुवों पर ही फंस गए हैं। अब वैज्ञानिक इन चक्रवातों का गहन अध्ययन करेंगे।
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भानु बंगवाल
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।