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March 23, 2023

अचानक थमा छावनी परिषद चुनाव का प्रचार, उम्मीदवारों के सपनो को झटका, चुनाव किए गए रद्द

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देश भर में छावनी परिषद के चुनाव 30 अप्रैल 2023 कराने की अधिसूचना जारी होने के बाद से ही चुनाव लड़ने के दावेदारों ने अपना प्रचार शुरू कर दिया था। उत्तराखंड में तो कांग्रेस सारी छावनी परिषद में प्रत्याशी उतारने की घोषणा कर चुकी थी। वहीं आम आदमी पार्टी भी चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर बैठकों का सिलसिला आरंभ कर चुकी थी। यही नहीं, देहरादून में क्लेमेंटटाउन छावनी क्षेत्र में उच्च शिक्षित लोगों के चुनाव मैदान में उतरने का ऐलान करने का सिलसिला शुरू हो चुका था। उच्च शिक्षित प्रत्याशी डॉ रिंकू यादव ने वार्ड दो से और प्रोफेसर और रक्तदान करके लोगों की जान बचाने के लिए मशहूर डॉ एमपी सिंह ने वार्ड तीन से चुनाव लड़ने की घोषणा की। इसके साथ ही दोनों प्रचार के तौर पर रोड शो भी कर चुके थे। इस बीच खबर आई कि रक्षा मंत्रालय ने छावनी परिषदों के चुनाव स्थगित कर दिए हैं। उत्तराखंड में नौ कैंट बोर्ड हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

प्रत्याशियों को लगा झटका, वैरी बोर्ड के हाथ में रहेगी विकास की बागडोर
छावनी परिषद में सभासद बनने की उम्मीद संजोए जनप्रतिनिधियों को बड़ा झटका लगा है। यहां पिछले एक साल से विकास की बागडोर वैरी बोर्ड के हाथ है। चुनाव रद होने के कारण अभी यही व्यवस्था चलती रहेगी। दरअसल, कैंट बोर्डों का कार्यकाल पांच साल का होता है। यह कार्यकाल फरवरी 2020 में पूरा हो गया था, लेकिन चुनाव न होने के कारण निर्वाचित बोर्ड का कार्यकाल दो बार, छह-छह माह के लिए बढ़ाया गया। वहीं, बीते साल फरवरी में वैरी बोर्ड अस्तित्व में आ गया। बीती दस फरवरी को वैरी बोर्ड को एक साल पूरा हो चुका है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

वैरी बोर्ड को तीसरी बार एक्सटेंशन
इस बीच रक्षा मंत्रालय ने वैरी बोर्ड को तीसरी बार एक्सटेंशन दिया था, पर फिर एकाएक चुनाव की घोषणा कर दी। वैरी बोर्ड में जनता की नुमाइंदगी नाममात्र की है। ऐसे में जनता से जुड़ी समस्याओं की प्रभावी पैरवी बोर्ड के समक्ष ठीक ढंग से नहीं हो पाती है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

अधिसूचना जारी होते ही बढ़ गई थी सरगर्मियां
चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद सभी छावनी क्षेत्रों में राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ गई थी। अभी तक चुनाव लड़ते आए जनप्रतिनिधियों समेत कई अन्य लोग ने भी जनता के साथ संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया था। निकट भविष्य में अपनी दावेदारी को लेकर आश्वस्त दिख रहे नेताओं ने प्रचार-प्रसार के नाम पर अच्छी खासी धनराशि भी खर्च करनी शुरू कर दी थी। चुनाव रद होने से उनकी उम्मीद पर पानी फिर गया है।

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