पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड की वेदना को दर्शाती भूपेन्द्र डोंगरियाल की कविता-खाली हुआ सारा पहाड़
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खाली हुआ सारा पहाड़
यहाँ पर्वतों के बीच से,बहती रही नदियों की धार।
गाँव में जब सड़क पहुँची,खाली हुआ सारा पहाड़।।
घर गारे-पत्थर से बने थे,बलिष्ठ होते थे इन्सान।
जन्म से पत्थरों पर चला,पत्थर पर बने निशान।।
अब कहाँ हैं अपने-पराए,कहाँ हैं तीज-त्यौहार।
गाँव में जब सड़क पहुँची,खाली हुआ सारा पहाड़।।
कुमाऊँ-गढ़वाल के,कुछ किस्से रह गए हैं खास।
सिमटे हुए बावन गढ़ों का,बन गया है इतिहास।।
सब बसे शहरों में आकर,गाँव खँडहर हैं उजाड़।
गाँव में जब सड़क पहुँची,खाली हुआ सारा पहाड़।।
यहाँ वक़्त पर वर्षा न होती,हैं लापता देवेन्द्र भी।
वेदना किसको सुनाए,अब थक गया “भूपेन्द्र” भी।
राज्य उत्तराखण्ड लेकर,उत्तराखण्डी अब तो दहाड़।
गाँव में जब सड़क पहुँची,खाली हुआ सारा पहाड़।।
कवि का परिचय
नाम- भूपेन्द्र डोंगरियाल
जन्म स्थान- ग्राम- बल्यूली, जनपद-अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड।
वर्तमान पता- आईटीआई कैम्पस, निरंजनपुर, देहरादून।
भूपेन्द्र डोंगरियाल उत्तराखण्ड राज्य सरकार के सेवायोजन एवं प्रशिक्षण अनुभाग में अनुदेशक के पद पर कार्यरत हैं। वर्जिन साहित्यपीठ के सौजन्य से अभी तक उनकी पाँच ई बुक्स प्रकाशित हो चुकी हैं।
मोबाइल नम्बर-
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