शिवसेना बनाम शिवसेना, राज्यपाल की भूमिका पर भड़का सुप्रीम कोर्ट, कहा-पार्टी के भीतर मतभेद फ्लोर टेस्ट का आधार नहीं
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महाराष्ट्र में शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल से कहा कि उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था। उनको खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है ? CJI ने राज्यपाल से आगे पूछा- क्या फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए पर्याप्त आधार था? आप जानते हैं कि कांग्रेस (INC) और एनसीपी (NCP) एक ठोस ब्लॉक हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि राज्यपाल को इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं करना चाहिए, जहां उनकी कार्रवाई से एक विशेष परिणाम निकलेगा। सवाल यह है कि क्या राज्यपाल सिर्फ इसलिए सरकार गिरा सकते हैं क्योंकि किसी विधायक ने कहा कि उनके जीवन और संपत्ति को खतरा है? (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सीजेआई ने राज्यपाल से कहा कि धारणा शिवसेना के भीतर आंतरिक मतभेदों को अधिक महत्व देने की है। एक तो पार्टी के भीतर असंतोष और दूसरा सदन के पटल पर विश्वास की कमी। ये एक-दूसरे का सूचक नहीं है। किस बात ने राज्यपाल को आश्वस्त किया कि सरकार सदन का विश्वास खो चुकी है। हम राज्यपाल के पक्ष में सभी धारणाएं बनाएंगे। राज्यपाल को इन सभी 34 विधायकों को शिवसेना का हिस्सा मानना चाहिए तो फिर फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया गया। राज्यपाल के सामने तथ्य यह है कि 34 विधायक शिवसेना का हिस्सा थे। अगर ऐसा है तो राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया। इसका एक ठोस कारण बताना चाहिए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से कहा कि आप सिर्फ इसलिए विश्वास मत नहीं बुला सकते, क्योंकि किसी पार्टी के भीतर मतभेद है। पार्टी के भीतर मतभेद फ्लोर टेस्ट बुलाने की आधार नहीं हो सकता। आप विश्वास मत नहीं मांग सकते। नया राजनीतिक नेता चुनने के लिए फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता। पार्टी का मुखिया कोई और बन सकता है। जब तक कि गठबंधन में संख्या समान है। राज्यपाल का वहां कोई काम नहीं। ये सब पार्टी के अंदरुनी अनुशासन के मामले हैं। इनमें राज्यपाल के दखल की जरूरत नहीं है।