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March 23, 2023

जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में टकराव जारी, नियुक्ति के पैनल में अपने प्रतिनिधि चाहती है सरकार

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जजों की नियुक्ति का मामले में केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के बीच टकराव जारी है। सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार नियुक्ति के पैनल में अपने प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहती है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने सीजेआई को इस संबंध में पत्र भी लिखा है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है। साथ ही जजों की नियुक्ति की संवैधानिक प्रक्रिया में सरकार के प्रतिनिधि शामिल करने का सुझाव भी दिया। केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम में संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को हाईकोर्ट कॉलेजियम में शामिल करने का सुझाव भी शामिल है। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

सूत्रों ने कहा कि इस पत्र में कहा गया कि ये पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही के संचार के लिए जरूरी है। सूत्रों के मुताबिक CJI डी वाई चंद्रचूड़ को कानून मंत्री किरेन रिजिजू का पत्र संवैधानिक अधिकारियों द्वारा आलोचना की कड़ी में नया है। उपराष्ट्रपति और लोकसभा अध्यक्ष ने भी हाल ही में SC पर अक्सर विधायिका के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने का आरोप लगाया है। कॉलेजियम प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने के बाद केंद्रीय कानून मंत्री ने सुझाव दिया है कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों को SC कॉलेजियम में शामिल किया जाए। साथ ही संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को HC कॉलेजियम में शामिल किया जाए। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

पत्र में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस रूमा पाल के बयानों का हवाला भी दिया गया है। इसमें उन्होंने कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाए थे। वहीं सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का मानना है कि ये सुझाव सरकार द्वारा NJAC को पिछले दरवाजे से लाने की कोशिश है। दरअसल रिजिजू ने हाल ही में कॉलेजियम प्रणाली की लगातार आलोचना की है। इसे “अपारदर्शी”, “संविधान के लिए एलियन” और दुनिया में एकमात्र प्रणाली बताया था, जहां न्यायाधीश ऐसे लोगों को नियुक्त करते हैं जिनको वो जानते हैं। (खबर जारी, अगले पैरे में देखिए)

NJAC को रद्द करने के बारे में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का 2015 का राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को खारिज कहने का फैसला संसदीय संप्रभुता के साथ गंभीर समझौते और जनादेश की अवहेलना का उदाहरण था। लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी उपराष्ट्रपति की बात का समर्थन किया था।

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