शिक्षिका डॉ. पुष्पा खण्डूरी की कविता-बेचैन मन
1 min readबेचैन मन
बेचैन मन सोचता बहुत है
तर्क बितर्क के जंजाल में
वो फंसता सा चला जाता है
निरन्तर जीता है अतीत में
और अपनी दशा का करता
रहता है विचारी कह आकलन
तरस खाता है बस दशा पर
अपनी और रोता है जार जार
सभी पर क्रोध करता है बेकार
भूलना चाहता है बेवश यादों को
अन किए अपने सब वादों को
तोड़ना चाहता है उस कारा को
जो उसके विचारों की मकड़ी ने
बुनी थी उसकी स्मृति के धागों से
पर तब बहुत देर हो चुकी होती है
अतीत से लेकर वर्तमान की खाई
और भी गहरी हो चुकी होती है
जिसको पाटना मुश्किल ही नहीं
अब नामुमकिन सा ही दिखता है
इसी लिए अतीत में नहीं हमें
वर्तमान में ही रहना और जीना है
दिल में भर कर नहीं जीना
दिल खोल कर ही जीना है ।
भविष्य फिर हमारा ही होगा ”
“बीति ताहि बिसार दे
आगे की सुधि लेय”
कवयित्री का परिचय
डॉ. पुष्पा खण्डूरी
एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष हिन्दी
डी.ए.वी ( पीजी ) कालेज
देहरादून, उत्तराखंड।