अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर बाल कवयित्री दीपिका की कविता-आज भी लड़का लड़की के फर्क में आधी दुनिया फसी है
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लड़की होने पर भी कहीं उदासी है
जान तो सबकी एक जैसी है
फिर ये भेदभाव की लकीर कैसी है।
साल 1910 में कोपेनहेगन में किया गया एक सम्मेलन था।
जिसमें 8 मार्च को मनाया गया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस था।
मुझे ये सोच चुभती हे,
घर और ऑफिस दोनो संभालने की काबिलियत हर नारी रखती है
बस ये लड़का –लड़की के फर्क की सोच उसे चुभती है।
लड़का लड़की के भेदभाव से समाज मुक्त कराया जा सकता है
दोनो हमारे समाज की आवश्यकता है।
हम सभी को सोचना चाहिये कि
लड़का लड़की में भेदभाव न करके,
दोनो को समान अधिकार दिलाएं
बच्चे का लिंग परीक्षा न कराये।
लड़का लड़की एक समान
ऐसी भावना सा बनेगा देश महान।
दोनो मिलकर देश चलाएंगे
अपनी कुशलता से देश को आगे बढाऐंगे।
कवयित्री का परिचय
कु. दीपिका
कक्षा -8
राजकीय पूर्व माध्यमिक, विद्यालय डोईवाला देहरादून, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।