तो तय समय से पहले होंगे उत्तराखंड में विधान सभा चुनावः पंकज कुशवाल
1 min readभारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड विधान सभा चुनाव समय से पहले करवाने की तैयारियों में जुटी है। मौजूदा हालातों को देखकर लगने लगा है कि भाजपा फरवरी 2022 में प्रस्तावित विधान सभा चुनाव को समय से पहले करवा सकती है। सल्ट विधानसभा उपचुनाव में भाजपा की ओर से प्रत्याशी की घोषणा के साथ ही इस संभावना को बल दिखता मिल रहा है। अब तक माना जा रहा था कि नवनियुक्त मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत सल्ट विधान सभा से उपचुनाव लड़कर विधान सभा सदस्य बन जाएं, लेकिन पार्टी की ओर से उम्मीदों से उलट सल्ट विधान सभा में अन्य को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद साफ होने लगा है कि भाजपा की योजना राज्य में अक्टूबर महीने तक विधान सभा चुनाव करवाने की है।
भारतीय जनता पार्टी को 2017 में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में भारी बहुमत मिला था। वोट प्रतिशत में बढ़ोत्तरी के साथ ही दोनों राज्यों में बहुमत से अधिक सीटें भारतीय जनता पार्टी की झोली में आई थी। उत्तर प्रदेश में यह जीत भाजपा के लिए अप्रत्याशित थी। ऐसे में 2022 में दोनों राज्यों में जीत दोहराना भाजपा के लिए बेहद जरूरी हो गया है।
उत्तर प्रदेश में मौजूदा हालातों को देखर माहौल को भाजपा के पक्ष में नहीं माना जा सकता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश बीते तीन महीनों से अधिक समय से कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन की आग में तप रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के साथ सुलह करने की हर संभव कोशिश करने के बाद भी किसानों और भाजपा के बीच की दूरी घटती नहीं दिख रही है। वहीं, पूर्वांचल समेत राज्य के अन्य हिस्सों में बेरोजगारी बड़ा मुद्दा बना हुआ है। ऐसे में भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में 2017 जैसा प्रदर्शन करने की राह आसान होती नहीं दिखती है। ऐसे में भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की जरूरत आन पड़ी है।
वहीं, अब तक माना जाता है कि दिल्ली की राह उत्तर प्रदेश से होकर ही जाती है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन कमजोर रहा तो इसका असर 2024 में लोक सभा चुनावों पर भी पड़ता दिखेगा। ऐसे में भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश चुनाव बड़ी चुनौती के साथ ही अपनी जीत की लय को बरकरार रखने के लिए जरूरी है।
ऐसे में उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड विधान सभा के चुनाव साथ साथ करवाने से भाजपा को अपनी पूरी फौज को उत्तर प्रदेश के रण में लगाने से समझौता करना पड़ेगा और उत्तराखंड भी भाजपा अपनी वापसी करके राज्य के बीस साल के मिथक को तोड़ना चाहती है। ऐसे में दोनों राज्यों के एक साथ चुनाव करवाने पर भाजपा को दोनों राज्यों में अपनी सरकारी की वापसी के लिए पहले से अधिक मेहनत करनी पड़ेगी।
यदि उत्तराखंड में समय से पहले चुनाव हुए तो दिसंबर से लेकर फरवरी तक उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ ही उत्तराखंड के भाजपा नेताओं को भी उत्तर प्रदेश के रण में झोंका जा सकता है। उत्तराखंड विधान सभा चुनाव को भाजपा जीत के लिहाज से बेहद आसान मान रही है। लिहाजा, यदि समय से पहले भी उत्तराखंड में चुनाव हुए तो भाजपा के लिए कमजोर कांग्रेस के चलते यह जीत आसान ही होगी, जबकि उत्तर प्रदेश में उसे फरवरी के सर्द दिनों में भी खूब पसीना बहाना पड़ेगा। लिहाजा, भाजपा की सारी शक्ति उत्तर प्रदेश में ही लगे, इसके लिए भी उत्तराखंड विधान सभा चुनाव समय से पहले करवाने की तमाम संभावनाएं बन रही है।
तीरथ सिंह रावत का सल्ट से चुनाव न लड़ना इस बात का संकेत भी दे रहा है। अगर तीरथ सिंह रावत सल्ट से चुनाव नहीं लड़ रहे हैं तो इसका मतलब उन्हें अगले छह महीने में अन्य विधान सभा सीट से चुनाव लड़ना होगा। इसका मतलब है कि चुनावी साल में राज्य को दो दो चुनावी आचार संहिता से गुजरना होगा। जिसका असर चुनावी साल के विकास कार्यों पर भी पड़ेगा। लिहाजा, यह माना जाए कि तीरथ सिंह रावत के छह महीने पूरे होने से पहले ही भाजपा चुनावी मैदान में उतरने की घोषणा कर सकती है।
लेखक का परिचय
नाम-पंकज कुशवाल
मूल रूप से उत्तरकाशी निवासी हैं। रेडियो, समाचार पत्रों में काम करने का अनुभव के साथ ही वह बाल अधिकारों, बाल सुरक्षा के मुद्दों पर कार्य कर रहे हैं। विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ कार्य करने के साथ ही वह सुदूर क्षेत्रों में मुख्यधारा की मीडिया से छूटे इलाकों में वैकल्पिक मीडिया का युवाओं को प्रशिक्षण व वैकल्पिक मीडिया टूल्स विकसित करने का प्रयास करते हैं। वर्तमान में पत्रकारिता से पेट न पलने के कारण पर्यटन व्यवसाय से जुड़कर रोजी रोटी का इंतजाम कर रहे हैं। वह किसी विचारधारा का बोझ अपने कमजोर कंधों पर नहीं ढोते।