कवयित्री रंजना शर्मा की दो कविताएं – भीगती रही और अपने आप से
1 min read“भीगती रही”
जुटाई रोटी उसने
अथक परिश्रम से
और कोशिशों की नाव से
पार की नदग
जिससे उसके आत्यीय रिश्तों की आंतें
भूख से
न चिपकें
उसने साधा
असाध्य को
अंधकार का मौन जी कर
जिन्दगी का आकार
और
संरक्षण की लम्बी जमात
खड़ी करने के लिए
उसने
बुजुर्गों के जुटाये संग्रह से
बिना कुंडे वाले
जंग लगे बक्से से
जैसे तैसे
झमझमिती बरसात मे जुटाई
तार तारहुई
काली बड़ी छतरी
सारा परिवार आ दुबका उसमे
और
वह किनारे खड़ी भीगती रही ।
“अपने आप से”
टूट टूट कर
टुकड़े टुकड़े हुई जिन्दगी
खून के कतरो मे लिपटी
आज के संदर्भ में
मूल्यहीन मान्यताये
हमारे भविष्य को चरमराती
रुढीवादी परम्पराए
स्वय तो भींची है हमने
अपनी मुट्ठियो मे व्यक्तित्व के शून्य से पूर्व
आत्मविश्वास का एक लगाकर
आज और अभी
कल के लिए
जुड़े कोटिश:संकल्पों सेमुट्ठी खोलने भर की बात है
पर हम डरे हैं तुमसे
यानि समाज से
जो तुमसे बना है
या स्वयं अपने आप से ।
कवयित्री का परिचय
नाम- कुमारी रंजना शर्मा
एमकेपी पीजी कालेज से सेवानिवृत्त
अब तक प्रकाशित पुस्तकें-
हस्ताक्षर “कविता संग्रह
“थोजपत्र पर धूप “संस्मरण संग्रह
“ये बतियाते पल “संयुक्त सम्पादन मे संस्मरण
सहसंपादन “वाह रे बचपन “
और युगचरण अविराम आदि ।
बंजारावाला देहरादून में निवास ।