सुरेश भट्ट उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश महामंत्री नियुक्त, जानिए उनका राजनीतिक सफर
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भारतीय जनता पार्टी उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने सुरेश भट्ट को भाजपा उत्तराखंड का प्रदेश महामंत्री नियुक्त किया है। भगत ने आशा व्यक्त की है कि सुरेश भट्ट के प्रदेश महामंत्री बनने से उत्तराखंड में संगठन को और गति मिलेगी व उनके अनुभव का लाभ प्रदेश भाजपा को प्राप्त होगा। भाजपा मीडिया प्रभारी डॉ देवेंद्र भसीन ने बताया कि उत्तराखंड भाजपा में प्रदेश महामंत्री के तीन पद हैं। इनमें से एक पद बंशीधर भगत के अध्यक्ष रूप में पद ग्रहण करने व उनके द्वारा प्रदेश पदाधिकारियों व कार्यसमिति की घोषणा के बाद से ही रिक्त चल रहा था। इस रिक्त पद प्रदेश अध्यक्ष भगत ने भट्ट की नियुक्ति की है। भट्ट इससे पहले हरियाणा में भाजपा प्रदेश महामंत्री ( संगठन) थे।
परिचय व जन्म स्थान
जन्म 6 सितंबर 1968 को। उत्तराखंड के नैनीताल जनपद के तहसील कालाढूंगी के ग्राम झलुवा झाला गावँ में पैदा हुए। पिता का नाम स्वर्गीय प्रेम बल्लभ व माता श्रीमती पार्वती देवी। तीन भाई व दो बहने हैं परिवार में। वह सबसे बड़े बेटे हैं। झलुवा झाला गांव नैनीताल से 40 किलोमीटर व हल्द्वानी से 20 किलोमीटर की दूरी में है।
शिक्षा
प्राथमिक शिक्षा गांव के प्राइमरी पाठशाला में झलुवा झाला प्राथमिक विद्यालय में हुई। चाचा जी प्रधानाध्यापक थे तो उनके साथ रह कर राइंका लोहाघाट व राइउ माध्यमिक विद्यालय पंतस्थली सुनोड़ा में कक्षा 6 से 8 तक की पढ़ाई पूर्ण की।।
तत्पश्चात एकीकृत छात्रवृत्ति की परीक्षा उत्तीर्ण ने कर कक्षा 9 से राइंका अल्मोड़ा में छात्रावास में रहकर 10 वीं तक की पढ़ाई पूर्ण की ।।
उच्चतर शिक्षा
1986 में बीए स्नातक तथा 1988 में एमए स्नातकोत्तर के साथ ही 1992 में विधि लॉ स्नातक की परीक्षा कुमायूं विश्वविद्यालय नैनीताल के अल्मोड़ा कैंपस (वर्तमान में विश्वविद्यालय का दर्जा) से पूर्ण की।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से संपर्क
1986 में स्नातक की पढ़ाई करते समय अल्मोड़ा में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के माध्यम से छात्र राजनीतिक में सक्रिय हुए। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अल्मोड़ा जिले के जिला प्रमुख का दायित्व निभाते हुए अनेक छात्र आंदोलनों का नेतृत्व किया।
छात्रसंघ अध्यक्ष
1992 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के द्वारा प्रत्याशी बनाया गया और छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा। छात्रसंघ अध्यक्ष बनें। इससे पहले छात्र राजनीतिक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का इतना दबदबा नहीं था। इसी दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के माध्यम से ही आरएसएस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए। वहीं से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और आरएसएसके काम में जुट गए।
संघ के पूर्णकालिक प्रचारक
1993 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक नैनीताल में संपन्न हुई। इस बैठक की तैयारी के लिए 3 मास विस्तारक निकलने का तय किया। उस समय भट्ट ने केंद्र काशीपुर बनाकर विस्तारक की भूमिका निभाई। इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में दायित्व
1994 से 1996 तक मुरादाबाद में विभाग संगठन मंत्री रहे। 1996 से 1999 तक बरेली में संभाग संगठन मंत्री व प्रदेश मंत्री रहे। 1999-2003 तक आगरा में राष्ट्रीय मंत्री व प्रांत सह संगठन मंत्री के रूप में दायित्व का निर्वाह किया।
2003 में काशी ( वाराणसी ) राष्ट्रीय मंत्री व प्रदेश संगठन मंत्री बनाया गया। 2006-2008 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री बने। 2008-2010 तक लखनऊ रहते हुए क्षेत्रीय संगठन मंत्री का दायित्व निभाया।
भाजपा में दायित्व
जनवरी 2011 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भाजपा में भेजा गया व हरियाणा में भाजपा का प्रदेश संगठन महामंत्री का दायित्व दिया गया। उस समय हरियाणा में भाजपा के विधानसभा में केवल चार विधायक थे। सांसद एक भी नहीं था। हरियाणा में संगठन को मजबूती प्रदान करते हुए 2014 में हरियाणा में 47 विधायकों के साथ पूर्ण बहुमत की सरकार बनी। लोकसभा में 8 में से 7 सांसद जीते। 2019 में दूसरी बार हरियाणा में सरकार बनी सभी 10 सांसद जीते संगठन का विस्तार प्रत्येक बूथ तक किया।
छात्र आंदोलन
छात्र राजनीतिक में रहते हुए अनेकों सफल छात्र आंदोलन का नेतृत्व किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री रहते हुए बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन किया। बांग्लादेशी घुसपैठ के खिलाफ चिकन नेक किशनगंज ( बिहार ) में हजारों छात्रों की विशाल रैली का नेतृत्व किया।
उत्तराखंड राज्य आंदोलन
पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन में भी सक्रिय भूमिका निभाई। खटीमा व मुजफ्फरनगर गोलीकांड के बाद आंदोलन में शहीद हुए लोगों की अस्थियों को लेकर पूरे कुमायूं में अस्थि कलश यात्रा निकाली। जिसने पूरे उत्तराखंड में व्यापक आंदोलन का स्वरूप लिया। यह यात्रा उत्तराखंड राज्य आंदोलन में एक मील का पत्थर साबित हुई।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।