द्वितीय केदार श्री मद्महेश्वर मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए बंद, जानिए मंदिर की महत्ता
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उच्च हिमालय श्रृंखला में स्थित मद्महेश्वर धाम मंदिर के कपाट आज बृहस्पतिवार 4 गते मार्गशीर्ष की सुबह 7 बजे इस शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। कपाट बंद होने के बाद श्री मद्महेश्वर जी की डोली देवनिशानों के साथ प्रथम पड़ाव के लिए प्रस्थान कर गई। 22 नवंबर को डोली शीतकालीन गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ पहुंचेगी। यहीं मद्महेश्वर भगवान की पूजा होगी। गुरुवार को मद्महेश्वर जी मंदिर ब्रह्ममुहुर्त में खुल गया था। उसके पश्चात भगवान मद्महेश्वर जी पूजा-अर्चना दर्शन हुए। तत्पश्चात पुजारी टी. गंगाधर लिंग ने स्यंभू शिवलिंग की समाधि पूजा की। उसके बाद शिवलिंग को समाधि दी गयी।
बाबा मद्महेश्वर के जयकारों के बीच ठीक सात बजे प्रात सात बजे द्वितीय केदार मद्महेश्वर जी के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिये गये। इस अवसर पर डोली प्रभारी मनीष तिवारी, सहित अधिकारी, कर्मचारी, वेदपाठी, पुजारी, स्थानीय लोग एवं सीमित संख्या में श्रद्धालु जन भी मौजूद रहे। श्री मद्महेश्वर धाम में भी में मौसम सर्द है तथा बर्फ जमी हुई है।
डोली ने प्रथम पड़ाव के लिए किया प्रस्थान
द्वितीय केदार श्री मध्यमहेश्वर मंदिर के कपाट बंद होने के पश्चात श्री मद्महेश्वर जी की उत्सव डोली ने मंदिर की परिक्रमा की तथा प्रथम पड़ाव गौंडार गांव को प्रस्थान किया। कार्यक्रमानुसार 20 नवंबर को मद्महेश्वर जी की उत्सव डोली द्वितीय पड़ाव रांसी, 21 नवंबर को तृतीय पड़ाव गिरिया तथा 22 नवंबर को अपने गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ पहुचेंगी। इसी दिन परंपरागत रूप से मध्यमहेश्वर मेला आयोजित होगा।
22 नवंबर को रावल जी के प्रतिनिधि केदालिंग जी उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम् प्रबंधन बोर्ड के अपर मुख्य कार्यकारी अधिकारी बीडी सिंह, कार्याधिकारी एनपी जमलोकी, पुजारी बागेश लिंग, केदारनाथ धाम के पुजारी शिवशंकर लिंग, सहायक अभियंता गिरीश देवली, रिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी राजकुमार नौटियाल, कोषाध्यक्ष आरसी तिवारी, प्रशासनिक अधिकारी युद्धवीर पुष्पवान, प्रबंधक प्रदीप सेमवाल सहित केदारनाथ विधायक मनोज रावत, पूर्व विधायक आशा नौटियाल, जिला पंचायत अध्यक्ष चंडी प्रसाद भट्ट, देवानंद गैरोला, पुष्कर रावत तथा स्थानीय जनता, तीर्थ यात्री श्री मद्महेश्वर जी की डोली की मंगोल चौंरी में स्वागत करेंगे।
देवस्थानम बोर्ड के मीडिया प्रभारी डा. हरीश गौड़ ने बताया कि भगवान मद्महेश्वर जी की उत्सव डोली अपने देवनिशानों के साथ शीतकालीन गद्दीस्थल श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ पहुंचेगी और श्री ओंकारेश्वर मंदिर उखीमठ में भगवान मद्महेश्वर जी की शीतकालीन पूजाएं भी शुरू हो जायेंगी।
उल्लेखनीय है कि पंच केदारों में शुमार ग्यारहवें ज्योर्तिलिंग श्री केदारनाथ धाम के कपाट 16 नवंबर, तृतीय केदार तुंगनाथ जी के कपाट 4 नवंबर, चतुर्थ केदार रूद्रनाथ जी के कपाट 17 अक्टूबर को बंद हो गये है। चार धामों में श्री गंगोत्री धाम के कपाट 15 नवंबर, श्री यमुनोत्री धाम एवं श्री केदारनाथ धाम के कपाट 16 नवंबर को बंद हो चुके हैं, जबकि श्री बदरीनाथ धाम के कपाट आज शाम को शीतकाल हेतु बंद हो जायेंगे।
यहां है मद्दमहेश्वर मंदिर
कैलाश पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में 10853 फीट की ऊंचाई में यह मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद के ऊखीमठ विकासखंड में मनसूना स्थित स्थान पर स्थापित है। चारों ओर हिमालय पहाड़ियों से घिरे
इस रमणीय स्थान की खूबसूरती देखते ही बनती है। मध्यमहेश्वर मंदिर से 3-4 किमी० ऊपर एक बुग्याल आता हे जहाँ पर एक छोटा सा मंदिर है, जिसे बूढ़ा मध्यमहेश्वर कहा जाता है। यहाँ से हिमालय के चौखम्बा पर्वत का भव्यदर्शन होता है। चौखम्बा के साथ साथ मन्दानी पर्वत, केदारनाथ हिमालय श्रेणी आदि के दर्शन भी होते है। भक्ति के साथ साथ यह जगह ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए भी खासी अहम् मानी जाती है। मध्यमहेश्वर के कपाट छः माह के लिए खोले जाते है। बाकी सर्दियों के छः माह उखीमठ में भगवान की पूजा अर्चना की जाती है।
ये है किवदंती
मध्यमहेश्वर भगवान शिव के पंचकेदार मंदिरों में से एक है। पंचकेदारों में भगवान शिव के विभिन्न अंगों की पूजा की जाती है। शिवपुराण के अनुसार महाभारत युद्ध के पश्चात पांडवों को गुरु हत्या, गोत्र हत्या, अपने भाइयों की हत्या का दुःख सताने लगा। इसके प्रायश्चित का उपाय जानने के लिए लिए वे श्रीकृष्ण के पास गए, उनके समझाने पर भी जब पांडव प्रायश्चित करने का हठ नहीं छोड़ा तो श्रीकृष्ण ने उनसे वेदव्यास जी के पास जाने को कहा। वेदव्यास ने उन्हें कैलाश क्षेत्र में जा के भगवान शिव की तपस्या करने को कहा और उन्हें प्रसन्न कर अपने पाप से मुक्ति पाने का मार्ग बताया।
बहुत समय हिमालय में भ्रमण के दौरान जब एक स्थान पर आकर कुछ दिन वही भगवान शिव की स्तुति करने लगे तब थोड़ा आगे एक विशालकाय बैल पर उनकी नजर पड़ी। माना जाता है स्वयं भगवान शिव उन की परीक्षा लेने हेतु बैल रूप मे वहां प्रकट हुए थे, लेकिन गोत्र हत्या के दोषी पाडवो से नाराज थे और उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। परन्तु पाडवो ने उन्हें पहचान लिया था और उनका पीछा करने लगे। एक समय ऐसा आया की बेल ने अपनी गति बढ़ानी चाही, लेकिन भीम दौड़कर बैल के पीछे आने लगे। ये देख भगवान शिव रुपी बैल ने स्वयं को धरती में छुपाना चाहा, जो हि बेलका अग्र अर्ध भाग धरती मे समाया, वैसे ही भीम ने बेल की पूछ अपने हाथो से पकड़ ली। यही पीछे का भाग केदारनाथ के रूप में विद्यमान हुआ। कहा जाता है की बेलका अग्र भाग सुदूर हिमालय क्षेत्र में जमीन से निकला जो की नेपाल में था। जो की प्रसिद्ध पशुपति नाथ नाम से पूजा गया। बेल का शेष भाग यानी भुजाएं तुंगनाथ में, नाभि या मध्य भाग मदमहेश्वर में मुख रुद्रनाथ में (शेष नेपाल पशुपति नाथ में) तथा जटा एकल्पेशर में निकली।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।