पढ़िए युवा कवयित्री गीता मैंदुली की दो रचनाएं, मंजिल और इंसानियत का फर्ज
1 min readविषय -मंजिल
डरते क्यों हो तुम उलझनों से
तुम राह पर चलना तो सीखो
दूर नहीं अब कहीं मंजिल
तुम ये सोचकर तो आगे बढ़ो।।
मंजिल के इस सफर में तुम
हर कदम सोच समझ कर रखो
ऐसा ना हो मंजिल पास खड़ी हो
और तुम मंजिल से ही भटक जाओ।।
कुछ लोगों ने पा ली कुछ गुमराह भी हैं
मंजिल का सफर भी कुछ अनजान सा है
मेहनत और लगन से पा सकते हैं मंजिल
क्योंकि ना इसमें भेदभाव है ना ही कोई उम्र।।
दूसरी रचना – इंसानियत का फर्ज
कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है
कभी उनसे पूछिए तो सही कि उनका दर्द क्या है ,
ज़रूरी नहीं कि हर मुस्कान की वजह ख़ुशी हो
कभी कभी मजबूरियां भी होती हैं
वो बेवफ़ा है तो क्या हुआ
पहले तुम तो अपनी वफादारी का परिचय दो ,
कवयित्री का परिचय
नाम – गीता मैन्दुली
अध्ययनरत – विश्वविद्यालय गोपेश्वर चमोली
निवासी – विकासखंड घाट, जिला चमोली, उत्तराखंड।