पढ़िए कविता, बंद करो तानाशाही
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बंद करो… अजी तानाशाही!
कैसी देखो, विपदा आई।
लाल बिछड़, रहा माई माई।।
तुम तो छक, रहे दूध मलाई।
वह क्यों औंधे, पड़ा रजाई।।
लेखराज सुने जग हंसाई,
बंद करो… अजी तानाशाही!
बंद करो… अजी तानाशाही!!
उगता सूरज, उग जाने दो।
भोर सुहानी, तुम आने दो।।
जीवन में रस, घुल जाने दो।
रक्षक हो नाहीं, बनो कसाई।।
खा लेना भरपेट मिठाई,
बंद करो… अजी तानाशाही!
बंद करो… अजी तानाशाही!!
फैरी चोट ,अभी है ताजी।
कर दी है, बेहद बर्बादी।।
जीवन बाती, जल जाने दो।
जख्म हरे हैं, भर जाने दो।।
मिल बांटो यह पीर पराई,
बंद करो… अजी तानाशाही!
बंद करो… अजी तानाशाही!!
बीता समय लौट नहीं आता।
लिखा जा रहा सबका खाता।।
करनी सबको कर जाना है।
वापस सबको, घर जाना है।।
जहां खुलेगी पोल कलाई,
बंद करो… अजी तानाशाही!
बंद करो… अजी तानाशाही!!
कवि का परिचय
ललित मोहन गहतोड़ी
शिक्षा :
हाईस्कूल, 1993
इंटरमीडिएट, 1996
स्नातक, 1999
डिप्लोमा इन स्टेनोग्राफी, 2000
निवासी-जगदंबा कालोनी, चांदमारी लोहाघाट
जिला चंपावत, उत्तराखंड।
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भानु बंगवाल, देहरादून, उत्तराखंड।